Written By :न्यायाधीश ब्यूरो
Updated on : 26 Aug 2021
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बंदिशों के पार जाकर सूफी संगीत की धुनें बिखेरती कश्मीरी लड़कियां
श्रीनगर : जो कश्मीर में कभी बम धमाकों और आतंकी वारदातों के लिए जाना जाता था उसी कश्मीर की फिजांओं में अब सूफी संगीत की धुन लोगों के दिलों को सुकून दे रही है। समाज के विरोध और परिवार की नाराजगी के बावजूद कश्मीर में विलुप्त हो चुके सूफियाना संगीत में उत्तरी कश्मीर के बांडीपोरा जिले के छोटे से गांव गनसतान की पांच सहेलियां नई रूह फूंकने में जुटी हैं। कश्मीर घाटी में विशेष अवसरों, अथवा दरगाहों में गाए जाने वाले सूफियाना संगीत में आज भी लड़कियों का शामिल होना अच्छा नहीं समझा जाता। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद इन पांच सहेलियों ने हार नहीं मानी और अब यह कश्मीर की नई पहचान बनकर उभर रही हैं। देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी तारीफ पा चुकीं इन सहेलियों का कहना है कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना चाहती हैं। दावा किया कि कश्मीर में लड़कियों के सूफी संगीत का यह पहला समूह है। कश्मीर घाटी का बांडीपोरा जिला इल्म (ज्ञान), अदब (शालीनता) और पानी की मीठी झील बुल्लर के लिए मशहूर है। कश्मीर घाटी में सूफी संगीत को पुनर्जीवित करने वाली सहेलियों ने अपने समूह का नाम यमबरजल रखा है। यमबरजल छोटे-छोटे पीले रंग के फूलों को कहा जाता है जो कश्मीर में बहार आने पर सबसे पहले खिलते हैं। जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर गनसतान गांव की रहने वाली पांच सहेलियों में दो बहनों इरफाना यूसुफ, रिहाना यूसुफ के अलावा गुलशन लतीफ, शबनम बशीर और साइमा हमीद शामिल हैं। यमबरजल संगीत समूह की शुरुआत इरफाना व रिहाना ने की थी। 23 वर्षीय इरफाना इस संगीत में सबसे अहम माना जाने वाला यंत्र संतूर बजाती हैं। अन्य सहेलियां तबला, सितार, साज-ए-कश्मीर बजाती हैं। इरफाना ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि हमारे घर में संगीत का माहौल पहले से था। मेरे पिता मुहम्मद यूसुफ जो कि संतूर वादक भी हैं, बीते 22 वर्षों से सूफियाना संगीत से जुड़े हैं। पिता को अभ्यास करते हुए हम दोनों बहनें देखतीं थीं और इस तरह से धीरे-धीरे हमारी भी दिलचस्पी संगीत में बढ़ी। हम दोनों बहनों ने इसे सीखने का फैसला किया। हालांकि हमारे अब्बा हमें सिखाने को राजी थे लेकिन हमारी मां और बाकी रिश्तेदारों ने इस पर नाराजगी जताई। हमने घुटने नहीं टेके और ऐसे हमारा संगीतमय सफर शुरू हुआ। तब वह स्कूल में सातवीं और आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं। अब पांचों कालेज में हैं और सूफियाना संगीत में अपना भविष्य तलाश रही हैं।
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