Written By :न्यायाधीश ब्यूरो
Updated on : 17 Apr 2023
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प्रयागराज अतीक अशरफ हत्याकाण्ड - एक विश्लेषण

प्रयागराज: जनपद प्रयागराज के मेडिकल कॉलेज में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्यारों ने हत्या के लिए तुर्की निर्मित पिस्टल का इस्तेमाल किया। इस हत्या के बाद हम सभी के मन मे तमाम तरह के प्रश्न उठ खड़े हुए है। आज न्यायाधीश न्यूज़ सर्विस का एडिटर डेस्क इन सभी घटनाओं का विश्लेषण करेगा।

उमेश पाल हत्या में आई एस आई ने भेजे हथियार : अतीक अहमद के कनेक्शन पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी से भी थे। उमेश पाल हत्याकांड को अंजाम देने के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई एस आई ने अतीक गैंग को असलहों की सप्लाई दी थी। आई एस आई ने ए के 47, .45 बोर की पिस्टल और आर डी एक्स की सप्लाई अतीक गैंग को की थी।

राजफास के डर से हुई हत्या ? जिस तरह से उमेश पाल हत्याकांड को लेकर अतीक अहमद से हर दिन पूछताछ के दौर चल रहे थे तो वो दिन दूर नहीं था जब अतीक के पाकिस्तान से कनेक्शन को लेकर भी पूछताछ की जाती। अगर ऐसा होता तो निश्चित रूप से अतीक के सफेदपोश आकाओं के चेहरों से नकाब हट जाते। ऐसे में हो सकता है कि उन्ही सफेदपोशो ने पहचान जाहिर होने से छिपाने के लिए ही अतीक और अशरफ का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दिया हो।

हत्यारों ने लगाए थे जय श्री राम के नारे : घटनास्थल से प्राप्त वीडियो में साफ दिखाई दे रहा है कि हत्यारों ने अतीक और अशरफ की हत्या करने के बाद जय श्री राम के नारे लगाए जो सम्भवतः जांच एजेंसियों का ध्यान भटकाने और हिंदूवादी संगठनों को बदनाम करने की कोशिश भी हो सकती है। स्मरण रहे कि मुम्बई हमले के दौरान कसाब और उसके साथियों ने गले में हिन्दू देवताओं के लॉकेट और हाथ मे कलावा बांध रखा था ताकि ये लगे कि ये सभी हमलावर हिन्दू थे और हमले को हिन्दू आतंकवादी हमला साबित किया जा सके।

सरकार प्रायोजित हत्याकांड ? असद के एनकाउंटर के तुरंत बाद ऐसा जघन्य हत्याकांड सरकार के गले की ही हड्डी बना हुआ है और इससे सरकारी तंत्र की काफी किरकिरी और फजीहत भी हुई है। कोई भी सरकार इस तरह के नासमझी वाले तरीके अपनाने से बचती है। अब जबकि ये स्पष्ट हो चुका है कि हमलावरों का सम्बंध गिरोह से है ,इस जघन्य हत्याकांड को सरकार द्वारा कराया गया हत्याकांड नहीं कहा जा सकता है।

पुलिस की निष्क्रियता के मायने : अतीक अशरफ हत्याकांड के बाद राजनैतिक दलों ने घटनास्थल पर पुलिस द्वारा समय पर एक्शन न लिए जाने को साजिश के साथ जोड़ दिया। आनन फानन में अतीक अशरफ की सुरक्षा में तैनात सभी सत्रह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया। अब अगर ध्यान दें तो मालूम होगा कि हमारे देश मे सामान्य पुलिसकर्मियों को इस प्रकार के घटनाओं के दौरान त्वरित एक्शन लेने के लिए शारीरिक व मानसिक तौर पर प्रशिक्षित ही नहीं किया गया होता है। ऐसी विषम परिस्थितियों में कमांडो ही त्वरित एक्शन ले पाते है क्योंकि उनको ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए ही तैयार किया जाता है। अपनी कुर्सी बचाने के लिए ही वरिष्ठ अधिकारियों ने आनन फानन सभी सत्रह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया।

जहां तक मेरे स्वयं के अनुभव की बात है तो मैंने महसूस किया है जिन पुलिसकर्मियों को थानों से सम्बध्द किया जाता है उन पर काम का अत्यधिक दबाव बना रहता है। क्षेत्र में अपराध पर अंकुश, अदालतों में अपराधियों को पेशी पर लाना, उन्हें वापिस जेल तक ले जाना, अधिकारियों की वेवजह फटकार, परिवार को समय न दे पाने की झल्लाहट, पुलिस में भर्ती के समय के जुनून, उत्साह को खत्म कर देती है। समय बीतने के साथ तमाम पुलिसकर्मी ढीले ढाले थुलथुल, उत्साह से क्षीण बन जाते हैं। इन तमाम बातों के लिए पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी जिम्मेवार हैं जिन्होंने अपने मातहतों के लिए रूटीन प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं की और न ही अपने मातहतों की शारीरिक व मानसिक सेहत का ध्यान रखा। तो फिर निलंबित किसको किया जाना चाहिए ? उन सत्रह पुलिसकर्मियों को अथवा उनके वरिष्ठ अधिकारियों को ?

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