Written By :वालम मेघवाल
Updated on : 26 Jun 2021
Reader's View :630
परिसीमन से बदलेंगें जम्मू कश्मीर के राजनैतिक हालात, जम्मू को मिलेगा अधिक प्रतिनिधित्व
जम्मू : प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में जम्मू कश्मीर में परिसीमन को लेकर होने वाली बैठक जम्मू कश्मीर के राजनैतिक भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होगी. हमारे पाठकों को बताते चलें कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख, पहले लद्दाख जम्मू कश्मीर के अंतर्गत आता था, उस से पहले जम्मू कश्मीर नहीं केवल कश्मीर बोला जाता था, उससे पहले इसे कश्यमिरम कहते थे, शायद कश्यप + मीरा, मीरा का अर्थ महासागर भी होता है। कश्यप का देश, शुद्ध हिंदुओ का देश, आज वो कश्मीर के कई टुकड़े हो गए, आगे जम्मू लग गया पीछे कश्मीर, इसमें समाया था लद्दाख, इस का केवल 45% हिस्सा भारत के पास है, उस 45% में से एक हिस्सा लद्दाख जिस को अलग कर दिया, दूसरा हिस्सा जम्मू कश्मीर का। कश्मीर का एक छोटा सा हिस्सा भारत के पास है और जम्मू का एक हिस्सा भारत के पास है। कश्मीर का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान और चीन के पास है, गिलगित-बल्तिस्तान असली कश्मीर है जो पाकिस्तान के पास है, अब भारत इस पर बिना हमला किए क़ब्ज़ा नहीं कर सकता, हमला कभी करेगा नहीं। भारत के पास जो छोटा हिस्सा है केवल कश्मीर का, कुछ ऐसा कि पाकिस्तान के पास 72 हज़ार वर्ग किमी का हिस्सा और भारत के पास 16 हज़ार वर्ग किमी का हिस्सा है। केवल कश्मीर, इसके जिले श्रीनगर, बड़गाम, कुलगाम, पुलवामा, अनंतनाग, कुपवाड़ा, बारामूला, शोपिया, गांदरबल, बांदीपोरा हैं। झगड़ा गिलगित-बल्तिस्तान का नहीं है ये तो पाकिस्तान का हो गया, बात केवल आज़ाद कश्मीर (पाकिस्तान), ग़ुलाम कश्मीर (भारत) की है, झगड़ा केवल इस हिस्से का है, यहाँ भी पाकिस्तान के टटुओ की सरकार है। इसकी राजधानी मुज़फ़्फ़राबाद है, इसको ही पीओके कहा जाता है, गिलगित-बल्तिस्तान वाला तो पाकिस्तान ही समझो। जम्मू कश्मीर में 111 सीट हुआ करती थी, लद्दाख अलग हो गया अब 107 रह गयी, कश्मीर जो अभी तक सब से छोटा हिस्सा है उसकी 46 सीटें, जम्मू की 37, लद्दाख की 4 सीट, इसके अलावा ग़ुलाम कश्मीर की 24 सीटें अलग से रखी जाती हैं। ग़ुलाम कश्मीर में 24 सीटें केवल नाम की रखी जाती रही हैं सरकार वहाँ पाकिस्तान की है, कश्मीर पहाड़ी इलाक़ा यहाँ 46 सीटें, जम्मू की 37 सीटें, लद्दाख जो कश्मीर से अलग होना चाहता था वो केंद्र के आधीन ही रहेगा।
अब देखना ये है की परिसीमन की रिपोर्ट क्या आती है कश्मीर को कितनी सीट और जम्मू को कितनी सीट देता है ये देखने वाली बात होगी। क्या ग़ुलाम कश्मीर की 24 सीटें समाप्त हो जाएँगी या बची रहेगी? जम्मू जो अभी कश्मीर से क्षेत्र में और जनसंख्या में भी बड़ा है उसको कश्मीर से ज़्यादा सीट मिलेगी? मेरे ख़्याल से ग़ुलाम कश्मीर को भूल जाएँगे जैसे गिलगित-बल्तिस्तान वाले कश्मीर को को भूल गए, लद्दाख सैन्य अड्डा बन जाएगा। फिर जब अमेरिका का मन भर जाएगा तब चीन ले जाएगा। ज्ञात रहे कि अनुच्छेद 370 की आड़ लेकर जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जाति और जनजाति को आरक्षण का कोई नियम लागू नहीं होता था। विधानसभा की 87 सीटों में से केवल 7 (8%) सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थीं। यह सभी सीटें जम्मू क्षेत्रं में हीं थीं। मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर घाटी की सभी 46 सीटें किसी भी प्रकार के आरक्षण से पूरी तरह मुक्त थीं। जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जनजाति की अधिकृत संख्या 12% है। हालांकि अनाधिकारिक तौर पर उनकी संख्या लगभग 20% बतायी जाती है। लेकिन उनके लिए विधानसभा में एक भी सीट आरक्षित नहीं है। इसके ठीक विपरीत जम्मू कश्मीर से सटे राज्य पंजाब में (29%) तथा हिमाचल प्रदेश में भी (29%) सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित हैं। देश की संसद में भी 21% सीटें आरक्षित हैं। लेकिन जम्मू कश्मीर में अब होने जा रहे परिसीमन के पश्चात यह खेल पूरी तरह खत्म हो जाएगा। कम से कम 20 से 25 सीटें आरक्षित की श्रेणी में शामिल होँगी। इन आरक्षित सीटों के दायरे से कश्मीर घाटी अछूती नहीं रहेगी। जम्मू कश्मीर की सीटों के समीकरण के चरित्र और चेहरे में होने वाला यह परिवर्तन अब्दुल्ला और मुफ़्ती के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द सिद्ध होगा। राज्य की अनुसूचित जनजातियों में बकरवाल और गुर्जर जनजाति का ही बाहुल्य है। दोनो ही जनजातियां पूरी तरह भारत समर्थक रही हैं। विशेषकर बकरवाल जनजाति तो आतंकवाद के खिलाफ जंग में भारतीय सेना की भरपूर मददगार सिद्ध होती रही है। कश्मीर में तैनात रहे किसी सैन्य अधिकारी या जवान से बात करिए तो वह इस तथ्य की पुष्टि कर देगा। यही कारण है कि कश्मीर की तुलना में पाकिस्तान से सटी जम्मू की सीमा पर आतंकियों की घुसपैठ और उनको शरण देने के मामलों की संख्या लगभग नगण्य होती है। राज्य में सीटों की संख्या में परिवर्तन के अलावा राज्य की 20-25 प्रतिशत सीटों के चरित्र चेहरे में होने जा रहा यह परिवर्तन अब्दुल्ला और मुफ़्ती पर ज्यादा बड़ी गाज बन कर गिरेगा।
होम पेज पर जाने के लिए क्लिक करें.