Written By :न्यायाधीश ब्यूरो
Updated on : 21 Jul 2020
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भारत को 'रेडी टू ईट' फ़ूड देने वाले MTR की अनकही सक्सेस स्टोरी
यह कहानी है सफलता से असफलता की और उसके बाद असफलता से अत्यधिक सफलता की है। 1926 में उडुपी (कर्णाटक) में एक नाश्ता करने का स्टाल खुला था जहां मसाला डोसा और इडली मिला करता था। 12 साल बीत गए, और दोनों भाई, जिन्होंने इस स्टाल को शुरू किया था, उन्होंने इतने पैसे जमा कर लिए थे की अब वह स्टाल से आगे बढ़कर एक आउटलेट खोल सकें। पहले लोग सड़क पर खड़े होकर डोसा खाते थे, अब लोग आउटलेट पर बैठकर खाने लगे। मसाला डोसा और इडली के साथ और भी कई उडुपी खाद्य पदार्थ जोड़े गए। इस आउटलेट का नाम था 'मावली टिफ़िन रूम ' जब दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था, तो भारत में चावल का अकाल पड़ गया था। मावली टिफ़िन रूम में डोसा और इडली चावल को पीसकर बनाया जाता था। दोनों भाइयों ने चावल की जगह सूजी का इस्तेमाल किया, और सूजी से बानी इडली का नाम दिया 'रवा इडली' और डोसा का नाम दिया 'रवा डोसा'।
योजना यह बनाई गयी थी की जब विश्व युद्ध ख़तम होगा और चावल वापस से मिलने लगेगा, तब रवा इडली और डोसा बनाना बंद कर देंगे। लेकिन लोगों को यह इतनी ज्यादा पसंद आयी की इसे कभी बंद नहीं किया गया। इन्ही दोनों भाइयों ने भारत को 'रवा इडली' और 'रवा डोसा' दिया जो आज देश के कोने कोने में पसंद किया जाता है। भारत की आज़ादी के बाद बाद 'मावली टिफ़िन रूम' को एक रेस्टोरेंट में बदल दिया गया। दोनों भाई सफल हो चुके थे। उस समय भारत में गिने चुने रेस्टोरेंट होते थे और यह बड़े व्यापार में गिना जाता था। 'मावली टिफ़िन रूम' ने काफी नाम कमा लिया था, इसलिए इनका रेस्टोरेंट भी पूरे कर्णाटक में प्रसिद्द हो गया था। खाने की कीमत भी ज्यादा नहीं थी, इसलिए इनका रेस्टोरेंट हर समय भरा हुआ रहता था और लोग लाइन में इंतज़ार करते थे अपनी बारी का। कई लोग खाना टिफ़िन में पैक करवाकर ले जाते थे। आर्डर इतने ज्यादा बढ़ गए थे की दोनों भाइयों ने रेस्टोरेंट के पास एक ज़मीन खरीद कर वहाँ अलग से किचन बनाया ताकि इन बढ़ते ऑर्डर्स को पूरा किया जा सके। यह तो हो गयी सफलता की कहानी। अब बात करते हैं असफलता की। लेकिन इस से हुआ यह की उन्हें काफी नुक्सान सहना पड़ा जिसकी वजह से अपने कर्मचारियों को पैसे देने में दिक्कत आने लगी। फिर मजबूरन इन्हे अपने खाने की क्वालिटी घटानी पड़ी, और पहले जैसे भीड़ ने आना बंद कर दिया। एक साल में ही बहुत ज्यादा नुक्सान होने लगा था और बैंक में पड़े पैसे ख़तम होने लगे थे। इस रेस्टोरेंट को बंद करना पड़ा। 50 साल पुराना 'मावली टिफ़िन रूम' बंद हो गया। लेकिन, कहते हैं न की जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। दोनों भाई तो अब नहीं थे लेकिन उनके बच्चे इस रेस्टोरेंट को संभाल रहे थे। रेस्टोरेंट के ऑर्डर्स को पूरा करने के लिए जो अलग सा किचन बनाया गया था, वहाँ से शुरू की गयी रवा इडली और डोसा बैटर की पैकिंग ताकि लोग अपने अपने घरों में ही वह बना सकें जो वह इस रेस्टोरेंट में खाया करते थे। इसके साथ साथ गुलाब जामुन को भी पैक करके बेचा जाने लगा, लोगों को बस अपने घरों में इसके गोले बनाकर इसे तलना था और गरमा गरम गुलाब जामुन तैयार। 'मावली टिफ़िन रूम' का नाम बदलकर हो गया MTR
1976 में जब इमरजेंसी की घोषणा की गयी, तब सरकार ने सारे बड़े रेस्टोरेंट को निर्देश दे दिया की अपनी अपनी कीमतें 80% घटा दें ताकि सब लोग खाना खा सकें। बहुत से रेस्टोरेंट ने अपने खाने के क्वालिटी को घटा दिया लेकिन 'मावली टिफ़िन रूम' ने ऐसा नहीं किया। दाम 80% घटा दिए लेकिन खाने का क्वालिटी वही रखा।
सिर्फ उडुपी नहीं, पूरे कर्नाटक के हर किराना दुकान में बिकने लगे 'MTR के पैकेज्ड फ़ूड'। सिर्फ 5 सालों में पूरे दक्षिण भारत तक MTR का ब्रांड फ़ैल गया। इसके बाद कई प्राइवेट इक्विटी कंपनियां MTR के साथ जुड़ी और पूरे भारत सहित, विदेशों में भी फैलाया गया ब्रांड को।
'रेडी टू ईट' फ़ूड भारत को MTR ने दिया। आज MTR 5000 करोड़ की कंपनी बन चुकी है।
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